जब विनोद खन्ना का करिअर ऊंचाईयों पर था तब उन्होंने अपने परिवार को छोड़ने का फैसला ले लिया, और आध्यात्मिक नेता ओशो के शिष्य बन गए थे. आध्यात्मिक नेता ओशो के लिए विनोद खन्ना के मन में हमेशा बहुत सम्मान रहा था. जरूरी नहीं कि अध्यात्म में अगर रुचि है तो घर परिवार छोड़ दिया जाए. उनके इस फैसले से पूरा घर सकते में आ गया था..
ओशो के शिष्य बन गये थे विनोद खन्ना
उनके इस फैसले से परिवार का हर एक सदस्य और फैंस हैरान रह गए थे. तब उनके बेटे अक्षय खन्ना भी बहुत छोटे थे. कई सालों बाद अक्षय खन्ना ने एक इंटरव्यू में इस किस्से के बारे में बताया था. अक्षय ने कहा, “तब मैं इतना छोटा था कि पापा के फैसले मेरी समझ से बाहर थे. हालांकि, जब वह 15 साल के हुए, तब उन्हें समझ आया कि उनके पिता ने ऐसा क्यूँ किया. तब अक्षय को पता चल चुका था कि इंसान को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए अध्यात्म से जुड़ना चाहिए.

एक दूसरे इंटरव्यू में अक्षय खन्ना ने ये भी बताया के अपना घर परिवार छोड़ना, और उनसे लगाव ना रखना भी सन्यास का ही हिस्सा है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो सन्यास जीवन बदलने वाला निर्णय है. जिसे विनोद खन्ना ने मेहसूस किया. अक्षय कह्ते हैं कि 5 साल की उम्र में सन्यास को समझना उनके लिए बहुत मुश्किल था लेकिन अब अक्षय अपने पिता को समझते भी हैं और उनका साथ भी देते हैं.

अक्षय ने इस बारे में भी बताया कि जब आंदोलन को लेकर मतभेद चल रहे थे तब विनोद खन्ना हम सभी के पास वापस लौट आए थे. जब अमेरिकी सरकार ने कम्यून को भंग कर दिया. तभी उनके पिता ने वापस आने का निर्णय लिया. अगर ऐसा कुछ नहीं होता तो विनोद खन्ना कभी वापस नहीं आते.
जानकारी के लिए बता दें कि विनोद खन्ना को कैंसर था, जिससे जूझने के बाद अप्रैल 2017 में उनका निधन हो गया. उन्होंने 1968 में “मन का मीत” से फिल्म जगत में डेब्यू किया था. उन्होंने बाद में श्रीदेवी और ऋषि कपूर के साथ “चांदनी” फिल्म की जो हिट रही और वहीं से विनोद खन्ना की जिंदगी बदल गयी.
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