सिनेमा जगत में कई जेनर की फिल्में बनती है। ऐसा माना जाता है कि हर जेनर की फिल्मों के लिए अलग दर्शक वर्ग है। एक्शन देखने वालों को आर्ट फिल्में पसंद नही आती और पढ़े-लिखे इंटेलेक्चुअल लोगो को मसाला फिल्में प्रभावित नही करती। यहां हम एक ऐसे जेनर के बारे में बात करने जा रहे हैं जिस पर भारतीयों ने ज्यादा बात नही की लेकिन विदेशों में यह बहुत लोकप्रिय है। वही अभिनेता राज कुमार राव इंडस्ट्री के पहले एक शख्स है जिन्होंने इस जेनर की फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की थी..
क्या है फाइंड फुटेज जेनर
1980 की कल्ट हॉरर फिल्म ‘कैनिबल होलोकास्ट’ को दुनिया की पहली फाइंड फुटेज जेनर फ़िल्म माना जाता है। इस तकनीक को 1999 में रिलीज हुई ‘द ब्लेयर विच प्रोजेक्ट’ से काफी लोकप्रियता मिली। फाइंड फुटेज जेनर सिनेमा विधा में बहुत ही खास और अलग है। इसमें पूरी फिल्म को ऐसे प्रदर्शित किया जाता है मानो फ़िल्म के फुटेज किसी व्यक्ति को कहीं पर मिले हैं।
वह उन फुटेज को रॉ फ़ाइल में ही एडिट करके लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा है। ऐसे फिल्मों में नेचुरल अभिनय और हिलता-डुलता कैमेरा दिखता है। कैमरे को फ़िल्म का कोई किरदार पकड़ता है या ये घटना किसी हिडन कैमरे या सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई होती है। ऐसे जेनर में ज्यादातर हॉरर फिल्में बनाई जाती है क्योंकि हिलते कैमरे और नेचुरल अभिनय से लोगों को डरा पाना बेहद आसान है। यह विधा सुनने में जितना आसान लगता है उतना मुश्किल भी है। पैरानॉर्मल एक्टिविटी (2007) इस जेनर की सबसे सफल और लोकप्रिय फ़िल्म सीरीज है। यह फिल्में बेहद कम बजट में बनकर तैयार की जा सकती है।
भारत की पहली फाइंड फुटेज जेनर फ़िल्म
भारत में लो बजट फिल्में और महंगे सीरिअल्स बनाने के लिए प्रसिद्ध एकता कपूर ने यहां फाइंड फुटेज फिल्मों की शुरुआत की। दिबाकर बनर्जी ने फाइंड फुटेज फ़िल्म बनाने के लिए हॉरर को छोड़कर स्टिंग आपरेशन और एमएमएस कांड को चुना। 2010 में आई दिबाकर की ‘लव सेक्स और धोखा’ भारत की पहली फाइंड फुटेज जेनर फ़िल्म थी।
इसमें उन्होंने नए कलाकारों को लेने का निर्णय लिया और सबसे नेचुरल एक्टिंग करवाई। यह प्रायोगिक फ़िल्म थी जिसके लिए दिबाकर ने बहुत रिसर्च की थी। राजकुमार राव की ये पहली फ़िल्म थी। 2 करोड़ में बने इस फ़िल्म ने लगभग 10 करोड़ कमाए थे जिससे निर्माता को इसी तरह की दूसरी फिल्म बनाने का साहस दिया।
राजकुमार एकलौते अभिनेता जो फाइंड फुटेज जेनर करके आगे आए
2011 में ही एकता कपूर ने राजकुमार राव को लेकर रागिनी एमएमएस बनाई। यह फ़िल्म हॉरर जेनर की थी। इस फ़िल्म को देखने के बाद लोगों को लगा था कि यह सच्ची एमएमएस वीडियो है। लोगों ने रागिनी के नाम को लेकर खूब गूगल क़िया। यह फ़िल्म हिट रही और सनी लियोनी को लेकर दूसरा पार्ट बनाया गया जिसमें फाइंड फुटेज का उपयोग नही किया गया।
बालाजी एंटरटेनमेंट ने इसके बाद किसी भी फाइंड फुटेज जेनर पर काम नही किया और ना ही दिबाकर बनर्जी ने इस जेनर के प्रति इच्छा दिखाई।
2012 में आई क्वेश्चन मार्क मात्र 80 लाख में बनी थी
इन दोनों के फिल्मों के बाद भारत के कई अस्पिरिंग फिल्ममेकर्स को इस जेनर में काम करने की ललक जगी। उन्हें समझ आ गया कि कम बजट में इससे अच्छा जेनर हो नही सकता। साथ ही इसमें नामचीन एक्टर्स को लेने की भी ज़रूरत नही है। इसी अवसर का लाभ उठाते हुए वर्ष 2012 में दो फिल्में ‘अ क्वेश्चन मार्क’ और ‘द लॉस्ट टेप’ रिलीज़ की गई।
क्वेश्चन मार्क फ़िल्म अस्सी लाख में बनी थी और कुछ फ़िल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हुई थी।
30 लाख में बनी कन्नड़ फ़िल्म ने 5 करोड़ का कारोबार किया
साल 2013 में फाइंड फुटेज जेनर साउथ की तरह गया। वहां कन्नड़ में ‘6-5=2’ फ़िल्म ने लोगों को खूब आकर्षित किया। इस हॉरर-एडवेंचर फ़िल्म को दर्शकों के तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और 30 लाख के बजट में बने इस फ़िल्म ने 5 करोड़ का बिजनेस किया था। तेलुगु सिनेमा में भी इस जेनर का प्रयोग हुआ और ‘केस नंबर 666’ फ़िल्म बनाई गईं। 6-5=2 को मिली लोकप्रियता से 2014 में इसे हिंदी में फिर से बनाया गया।
2014 के बाद से इस जेनर में काम नही हुआ
मलयालम सिनेमा में वाजिये (Vazhiye) नाम की एक फाइंड फुटेज फ़िल्म कब से तैयार है। भारत मे 2010 में यह जेनर आया और 2014 तक ही सिमट कर रह गया। प्रयोग के तौर पर सिनेमा के लिए कुछ नया करने की चाह रखने वाले लोग इस जेनर में काम करना चाहते हैं लेकिन विदेशों की तरह यहां के प्रोडक्शन सपोर्टिव नही हैं। कई बंगाली और अन्य भाषाओं में बनी फाइंड फुटेज फिल्में कहीं प्रदर्शित नही हो पाई लेकिन यूट्यूब में उपलब्ध है।
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